मंगलवार, 15 मई 2012

क्या ...ये ज़िन्दगी है .....?

  कभी किसी गली नुक्कड़ पर चाय ढाबे पर...चाय  की  चुस्कियो के बीच आपने  छोटू पर गौर  किया है।..रूखे बदरंग  बाल , मैल  से लिपा गंगा -जमनी चेहरा , कुछ   तकती सी सूनी -सूनी आँखें लिए वो बड़ी ही शिद्दत से अपना  काम  किये जाता है .सारी दुनिया को जानने समझने की चाहत और रोटी कमाने की मजबूरी के बीच मौजूद  एक  गहरी खाई को पाटने का असफल  करता छोटू या छुटकी ज़िन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर हमसे टकराते ज़रूर हैं . हां ये बात और है की हम  को अक्सर अनदेखा  देते है अपनी रोज़मर्रा की उलझनों के चलते .