बुधवार, 30 जुलाई 2014

एक मुट्ठी इंतज़ार ……


एक हफ्ता....  हाँ एक हफ्ता ही तो बाकी  है अब.… नवम्बर से जिस घड़ी  का इंतज़ार मैं इतनी शिद्दत से कर रही थी , उसमे सिर्फ एक हफ्ते का समय ही बाकी रहा है। सिर्फ मैं और मेरा परमात्मा ही जानता है कि ये लम्बा समय मैंने किस तरह निकाला है।  न जाने क्यों मेरे उत्साह का प्याला छलक छलक जाता है , कहते है , ज़्यादा उत्साहित होना अच्छा नहीं मगर ये मेरे बस में नहीं कि मैं खुद को कल्पनाए करने से रोक लूँ।  पिछली बार मैंने हर पल को इस कदर नहीं जिया था , इस बार हर लम्हा हर पल बड़े ही ख़ुलूस से जी रही हूँ , चाहे वो दर्द का हो या उम्मीदों का। 
ये सारा आयोजन तो वैसे माही के लिया ही हो रहा है , क्योकि हम  तो माही  के साथ ही बेहद खुश थे, ज़िन्दगी में सम्पूर्णता थी, मगर हमारी मासूम सी नन्ही  माही अपनी ज़िन्दगी में अधूरापन महसूस कर रही थी जिसके चलते हमने ये कदम उठाया।  पर अब  लगता है  कि अनजाने में ही  मेरी  मासूम बच्ची ने मुझे ज़िन्दगी के एक नितांत खूबसूरत अहसास को नए ढंग से   जीने का मौका दे डाला।
हल्की हल्की आहट करने वाली ज़िन्दगी आज  अपनी मुट्ठियाँ भींचे , ताल ठोंक कर इस दुनिया में आने की तैयारी  कर चुकी है , और बस अगले बुधवार तक इंतज़ार करना है, देखते हैं कि किस्मत अगले हफ्ते क्या दिखाती है ?
जो भी हो ये तय है कि कुदरत का बेहतरीन तोहफा मेरी बाँहों में होगा।
नवम्बर से अगस्त तक का सफर कुछ कम  पीड़ा दायक नहीं था मेरे लिए , खास  कर के तब जब माही की ज़िम्मेदारी भी मुझ पर ही हो, मगर ईश्वर ने मुझे शक्ति दी अपनी  ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने की।
 ये ताक़त कुदरत   ने सिर्फ औरत को ही दी  है कि वो अपने में एक नई  ज़िन्दगी को सहेज सकती है , उसे   आकर दे सकती  है।  सृजन की शक्ति यूँ ही नहीं  मिलती , दर्द सृजन का मुख्य आधार है , धरती  का सीना चीर कर जब नन्हा सा पौधा  इस दुनिया में अपना अस्तित्व दर्ज  कराता है तो धरती भी तो दर्द का अनुभव करती है। और ये दर्द सिर्फ तब नहीं होता जब वो पौधा बाहर आता है बल्कि तब से ही शुरू हो जाता है जब एक बीज के पौधा बनने की प्रक्रिया धरती की गोद  में होती है.

जीती हूँ , मरती हूँ , हर लम्हा सहती हूँ,
आशा के धागों से पल पल पिरोती हूँ ,
जीवन के पन्नो को चाहत के रंगो  से रंगती ही जाती हूँ ,
 जाने अनजाने ही खुद पे इतराती हूँ। …
 

शनिवार, 4 जनवरी 2014

शिव जी के नाम खुला पत्र ------

23 June 2013

ऐसा हो नहीं सकता कि तुम्हारा वजूद नही है . हो तो ज़रूर कहीं ना कहीं ,मगर पता नहीं कहाँ ? हां एक बात तो अब तय है की मंदिरों और मस्जिदों में तो तुम नहीं बिलकुल नहीं रहते हो . क्योंकि जहाँ एक और मस्जिदों में लोगो की जिन्दगियों को मशीनगनों से भून दिया जाता है , वहीँ दूसरी और मंदिरों में प्रकृति अपना कोप दिखाती है और जनसंहार पर ही उतारू हो जाती है .ठीक वैसे ही जैसे जोधपुर में चामुंडा मत के मंदिर में हुआ था और अब केदारनाथ में उससे भी वृहद रूप में .
शायद तुमको भी हम इंसानों की तरह भूख लगती है ,कुछ अलग तरह की भूख ..... इंसानी जिंदगियों को खाने की भूख ....अपनी ही बनाई गयी कृतियों का संहार करने की "देव-पिपासा"......
वरना भारतीय संस्कृति में तो घर आये शरणागत के लिए सर्वस्व तक त्याग देने कि प्रथा है .... .और फिर तुम तो देव हो , देवों के देव -महादेव . सृष्टि की रक्षा हेतु हलाहल विष तक का पान कर लिया था तुमने तो ....! तब फिर अपनी शरण में आये श्रद्धा के पुतलों की ऐसी दशा तुम कैसे कर सकते हो ?
हर कोई तुमसे आस लगा कर कुछ न कुछ माँगने ही आया होगा , मगर तुमने उन्हें क्या दिया ......?? मौत ,अकाल मौत ....वो भी कदर बुरी और अमानवीय ...! तुमने तो हिटलर और मुसोलिनो को भी मात दे दी .
"सत्यम -शिवम्- सुन्दरम " यही कहा जाता है ना .मगर , कोई तुम्हारे द्वार पर कुछ आस लगा कर तुम्हारी शरण में आये , तुमसे कुछ उम्मीदें लगे, अंत समय तक तुमसे गुहार लगाए खुद को बचाने की .. और तुम उसे इस कदर नोच दो ,क्षत-विक्षत कर दो की उसे कफ़न का एक टुकड़ा तक नसीब न हो ...तो बताओ भला इसमें सत्य -शिव और सुन्दर कहाँ है ? ये हो वही बात हुई की बच्चे को उसका पिता हवा में उछाले और अपने पर विश्वास करने वाले खिलखिलाते हंसते हवा में उछल कर नीचे आते बच्चे को नीचे गिर कर मर जाने दे . वो बच्चा अपने अंत तक नहीं समझ पेग की उसका पिता उसके साथ ऐसी घात भी कर सकता है .
कण कण में बसने वाले भगवन , तुम तो उस बालक से भी ज्यादा नादान हो जो अपने खेलने के लिए मिटटी का घरोंदा बनता है और जी भर जाने पर पैर से लात मार कर उसे तोड़ डालता है .
जन जन की पीड़ को अपना समझने वाले भगवान , कहाँ हो तुम ? करुणा के सागर कहलाते हो न तुम ..क्या उस करुणा को केदारनाथ में प्रलय में बहा डाला ? कम से कम अपने नाम की तो लाज रखते ...! ऐसा भी क्या गुस्सा , ऐसा भी क्या आवेश ???
क्या फिर से किसी दक्ष ने तुम्हारी सती को आत्मदाह करने को मजबूर किया है जो यूं इस तरह अपना रौद्र रूप अपने ही भक्तों को दिखा रहे हो ?
मैं जानती हूँ कि तुम सर्वशक्तिमान हो , और मुझे तुमसे प्रश्न करने का कोई हक़ भी नहीं है , और अगर मैंने ढीठ बन कर तुमसे पूछ भी लिया तो तुम कौनसा मुझे उत्तर देने वाले हो ??
तुम मुझसे भी बड़े ढीठ बन कर चुप्पी साध कर बैठे ही रहोगे ....-------June 23 , 2013