बुधवार, 11 जुलाई 2012

ab ye bhi

बेशर्मी की भी हद होती है ! चिदंबरम अब ये कहता है कि देश के माध्यम वर्ग को  आइसक्रीम के 20 रूपये  देने में तकलीफ नहीं होती और चावल के एक रूपये बढ़ने पर  हंगामा खड़ा करते है। उस गैर ज़िम्मेदार इन्सान को कोई ये बताये कि हिन्दुस्तान जैसे देश में आइसक्रीम जैसी चीज़ रोते बच्चे को चुप करवाने के लिए दिलवाई जाती है। कोई भी हिन्दुस्तानी आइसक्रीम से पेट नहीं भरता अन्न से भरता है . बल्कि ये चिदंबरम महाशय भी चावल ही से अपना पेट भरते हैं वो भी रोजाना.! आइसक्रीम हमारे जीवन में विलासिता का प्रतीक  है, वो रोज़ नहीं कभी कभी यदा -कदा खाई जाती है। उसे त्यागा जा सकता है..... मगर चावल को नहीं .. क्या चावल जैसी अनिवार्यता के बढ़ाते दामों का विरोध करना भी अनुचित है  ? मगर इस सच्चाई को वो क्या समझे .जो बढ़ी हुई तनख्वाह , और तरह तरह के भत्तो के सहारे ऐश कर रहा हो? परमात्मा इन परजीवियों को सद्बुद्धि दे ....!!!!!

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