मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

ना भूली ना बिसरी

एक अरसे  बाद इस ब्लॉग कि सुध ली है मैंने . बात तो बड़ी बेहूदा होगी  अगर मैं ये  कहूं कि समय ही नहीं निकल  पाई . इसका अर्थ तो ये होगा कि पिछले एक डेढ़ साल से मैं खाती पीती और सोती रही हूँ , एक यन्त्र  की  भांति काम करती रही हूँ , बिना किसी सोच के साथ , भावना-विहीन , विचार शून्य . मगर ये सच नहीं है . सच तो ये है कि इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ मेरी लापरवाही थी . इंसान आक्षेपों  से बचने के लिए तरह तरह के बहाने बनता है .मगर  ये ब्लॉग मेरे दिल कि आवाज़ है और दिल कि आवाज़ को मैं नहीं झुठला सकती हूँ . 

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