शनिवार, 4 जनवरी 2014

शिव जी के नाम खुला पत्र ------

23 June 2013

ऐसा हो नहीं सकता कि तुम्हारा वजूद नही है . हो तो ज़रूर कहीं ना कहीं ,मगर पता नहीं कहाँ ? हां एक बात तो अब तय है की मंदिरों और मस्जिदों में तो तुम नहीं बिलकुल नहीं रहते हो . क्योंकि जहाँ एक और मस्जिदों में लोगो की जिन्दगियों को मशीनगनों से भून दिया जाता है , वहीँ दूसरी और मंदिरों में प्रकृति अपना कोप दिखाती है और जनसंहार पर ही उतारू हो जाती है .ठीक वैसे ही जैसे जोधपुर में चामुंडा मत के मंदिर में हुआ था और अब केदारनाथ में उससे भी वृहद रूप में .
शायद तुमको भी हम इंसानों की तरह भूख लगती है ,कुछ अलग तरह की भूख ..... इंसानी जिंदगियों को खाने की भूख ....अपनी ही बनाई गयी कृतियों का संहार करने की "देव-पिपासा"......
वरना भारतीय संस्कृति में तो घर आये शरणागत के लिए सर्वस्व तक त्याग देने कि प्रथा है .... .और फिर तुम तो देव हो , देवों के देव -महादेव . सृष्टि की रक्षा हेतु हलाहल विष तक का पान कर लिया था तुमने तो ....! तब फिर अपनी शरण में आये श्रद्धा के पुतलों की ऐसी दशा तुम कैसे कर सकते हो ?
हर कोई तुमसे आस लगा कर कुछ न कुछ माँगने ही आया होगा , मगर तुमने उन्हें क्या दिया ......?? मौत ,अकाल मौत ....वो भी कदर बुरी और अमानवीय ...! तुमने तो हिटलर और मुसोलिनो को भी मात दे दी .
"सत्यम -शिवम्- सुन्दरम " यही कहा जाता है ना .मगर , कोई तुम्हारे द्वार पर कुछ आस लगा कर तुम्हारी शरण में आये , तुमसे कुछ उम्मीदें लगे, अंत समय तक तुमसे गुहार लगाए खुद को बचाने की .. और तुम उसे इस कदर नोच दो ,क्षत-विक्षत कर दो की उसे कफ़न का एक टुकड़ा तक नसीब न हो ...तो बताओ भला इसमें सत्य -शिव और सुन्दर कहाँ है ? ये हो वही बात हुई की बच्चे को उसका पिता हवा में उछाले और अपने पर विश्वास करने वाले खिलखिलाते हंसते हवा में उछल कर नीचे आते बच्चे को नीचे गिर कर मर जाने दे . वो बच्चा अपने अंत तक नहीं समझ पेग की उसका पिता उसके साथ ऐसी घात भी कर सकता है .
कण कण में बसने वाले भगवन , तुम तो उस बालक से भी ज्यादा नादान हो जो अपने खेलने के लिए मिटटी का घरोंदा बनता है और जी भर जाने पर पैर से लात मार कर उसे तोड़ डालता है .
जन जन की पीड़ को अपना समझने वाले भगवान , कहाँ हो तुम ? करुणा के सागर कहलाते हो न तुम ..क्या उस करुणा को केदारनाथ में प्रलय में बहा डाला ? कम से कम अपने नाम की तो लाज रखते ...! ऐसा भी क्या गुस्सा , ऐसा भी क्या आवेश ???
क्या फिर से किसी दक्ष ने तुम्हारी सती को आत्मदाह करने को मजबूर किया है जो यूं इस तरह अपना रौद्र रूप अपने ही भक्तों को दिखा रहे हो ?
मैं जानती हूँ कि तुम सर्वशक्तिमान हो , और मुझे तुमसे प्रश्न करने का कोई हक़ भी नहीं है , और अगर मैंने ढीठ बन कर तुमसे पूछ भी लिया तो तुम कौनसा मुझे उत्तर देने वाले हो ??
तुम मुझसे भी बड़े ढीठ बन कर चुप्पी साध कर बैठे ही रहोगे ....-------June 23 , 2013

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